पूतना वध
भगवान के घर में सभी लोग बधाइयाँ लेकर आ रहे थे। लेकिन जब कंस को योग माया ने कहाँ की तुझे मरने वाला गोकुल में जन्म ले चूका है तब कंस ने अपनी दासी पूतना को गोकुल भेजा। और कहा की तुम कृष्णा को मार कर ही वापिस आना। जितने भी अभी जन्मे छोटे बालक हो सभी को मार आना।
पूतना आकाश मार्ग से गोकुल पहुंची तो एक सुन्दर स्त्री का वेश धारण किया और बहुत सुन्दर श्रृंगार किया हुआ है लेकिन अपने स्तनों से (विष)जहर लगा कर आई है। नन्द द्वार पर जब पहुंची तो यशोदा माँ आई है। पूतना कहती है अरी ब्रजरानी मेरे को तुम्हारे लाला का मुख दर्शन करना है। उसे लाड दुलार और प्यार करना है। तब माँ यशोदा कहती है सबने मेरे लाला देखा पर तू इतने दिन से कहाँ थी।
पूतना कहती है की मैं अपने मायके में गई हुई थी। ब्रजरानी यशोदा छोटे से कृष्णा को पलने से उठाकर पूतना की गोदी में दे देती है।
भगवान कहते है आ गई मौसी, मुझे इनका भी स्वागत करना है।
जैसे ही भगवान ने पूतना को देखा तो आँखे बंद कर ली है। बस यही से संत महात्माओ की कलम चलने लगी और अपने अपने भाव को प्रकट किया की आँखे क्यों बंद की? आइये कुछ भाव का आनंद लीजिये।
(कृष्णा माखन चोरी लीला )
“एक संत ने कहा की भगवान ने आँखे इसलिए बंद की क्योकि जैसे बच्चा डरावनी कोई चीज देख के डर जाता है भगवान भी डरावनी पूतना को देख के डर रहे है और वो कृष्णा को स्तन पान(दूध पिलाने) कराने लगती है।”
“एक संत कहते है मानो भगवान भोले बाबा का ध्यान कर रहे है और कहते, है हे शिव शंकर हमने तो कभी विष पिया नही है और ये हमे विष पिलाना चाहती है तो आप यहाँ आके विष पान कीजिये। आप नीलकंठ हो। आपको जहर पिने की आदत है। आप जहर जहर पी लो बाकि भोग हम लगा लगे।”
“एक संत कहते है की भगवान ने आँखे इसलिए बंद की क्योकि जब किसी बच्चे को कड़वी दवाई पिलाई जाती है तो अपने नेत्र बंद कर लेता है। विष भी कड़वा है इसलिए आँखे बंद कर रहे है।”
“एक संत(महाप्रभु जी) कहते है पूतना अविद्या का रूप है और भगवान अविद्या से परे हैं इसलिए आँखे बंद की है। भगवान कहते है ये अज्ञान रूपी पूतना है और मैं ज्ञान हु। ये अंधकार है और मैं प्रकाश हु। मुझे अविद्या को हटाना है। इसलिए भगवान ने अविद्या रूपी पूतना का संघार करने के लिए अपने नेत्र बंद किये।”
“एक संत कहते है की आँखे मिलने से प्रेम हो जाता है। और मुझे पूतना से प्रेम हो गया तो इसका उद्धार कैसे होगा।”
अब पूतना बाल कृष्ण को दूध पिलाने लगती है। भगवान ने पेट भर के दूध पिया फिर पूतना के प्राणो को पीने लगे। जैसे ही पूतना के प्राण निकलने लगे, दर्द के मरे छटपटा कर आकाश मार्ग की और उड़ गई है। और अपना विशाल राक्षसी रूप धारण कर लिया। और कृष्णा को कहती है अरे बालक छोड़ दे, छोड़ दे!
पूतना ने दो बार कहा की लाला छोड़ दे! गुरुदेव बताते है की पूतना कह रही है हे भगवान मुझे इस लोक से भी मुक्ति दे दो और परलोक से भी। भगवान पूतना से कहते है तीसरा कौन सा लोक है मैं तुझे भेज सकु। मानो पूतना कह रही है प्रभु आप मुझे अपने लोक में बुला लो।
भगवान ने स्तन पान करके पूतना के प्राणों को भी हर लिया है। 6 कोस में पूतना का शरीर जाकर गिरा है। भगवान पूतना के वक्ष स्थल पर खेल रहे है। ऊँची देह है। ब्रजवासियों ने सीढियाँ लगा कर भगवान को उतारा है। माँ की गोदी में दिया है। माँ ने पलने में सुलाया है।
तब ब्रजवासियों ने पूतना की देह को काट काट कर अंतिम संस्कार किया है। और पूतना के देह से सुगंध निकलने लगी। इतनी सुगंध निकली की सारे गोकुल में सुघन्ध फ़ैल गई।
(पूतना पूर्व जन्म)
राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से पूछा गुरुदेव जब इस देह को जलाते है तो दुर्गन्ध आती है लेकिन आप कह रहे हो पूतना को जलाने पर सुगंध रही है।
शुकदेव जी कहते है की परीक्षित ये पूतना पूर्वजन्म में राजा बलि की पुत्री थी और इसका नाम रत्नमाला था। बलि के यहाँ यज्ञ के समय वामन भगवान को देखकर इसकी इच्छा हुई कि वामन कितना सुन्दर है यदि ऐसा मेरा पुत्र हो और मैं उसे स्तनपान कराऊं। लेकिन जब वामन भगवान ने राजा बलि से 3 पग पृथ्वी ली तो रत्नमाला को लगा की मेरे पिता को वामन ने छल लिया है मैं उसका वध भी करू। उसकी यही इच्छा कृष्णावतार में पूरी हुई।
देखिये गुरुदेव कहते है की अपने भाव को कभी बदलना मत। भगवान से कोई भी एक भाव जोड़ लो। भाई का , बहिन का , मित्र का, बेटे का , दोस्त का , सखी का, गोपी का, जो भी आपको पसंद हो वो भाव जोड़ ले। और उस भाव को बदले मत। कृष्ण बाल लीला सुनी तो आपने पुत्र मान लिया। किशोरावस्था लीला सुनी तो आपने गोपी मान लिया। सुदामा चरित्र सुना तो मित्र मान लिया। ऐसे मत करना। कोई भी एक भाव बना लो और उसे मृत्यु पर्यन्त तक भजिये।